अपठित गद्यांश in Hindi with Question Answers for UPSSSC PET Exam and other competitive Exams.
#1. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
कुछ लाख वर्ष पहले की बात है जब मनुष्य जंगली था, वनमानुष जैसा उसे नाख़ून की जरुरत थी उसकी जीवन रक्षा के लिए नाख़ून बहुत ज़रूरी थे असल में वही उसके अस्त्र थे दाँत भी थे पर नाख़ून के बाद ही उनका स्थान था उन दिनों उसे झूझना पड़ता था प्रतिद्वन्दियो को पछाड़ना पड़ता था नाख़ून उसके लिए आवश्यक अंग था फिर वह अपने अंग से बाहर की वस्तुओ का सहारा लेने लगा। पत्थर के ढेले और पेड़ की डाले काम में लाने लगा (रामचन्द्रजी की वानरी सेना के पास ऐसे ही अस्त्र थे) ! उसने हड्डियों के भी हथियार बनाये! इन हड्डी के हथियार में सबसे मजबूत और सबसे ऐतिहासिक था इन्द्र देव का वज्र, जो ऋषि मुनि की हड्डियों से बना था मनुष्य और आगे बढ़ा उसने धातु के हथियार बनाये जिनके पास लोहे के अस्त्र और शस्त्र थे वे विजयी हुए। देवताओ के राजा तक को मनुष्ये के राजा से इसलिए सहायता लेनी पड़ती थी क्यूंकि मनुष्य के राजा के पास लोहे के अस्त्र थे असुरो के पास अनेक विधाये थी पर लोहे के अस्त्र नहीं थे शायद घोड़े भी नहीं थे आर्यो के पास यह दोनों चीज़े थी आर्ये विजयी हुए फिर इतिहास अपनी गति से बढ़ता गया नाग हारे सुपर्ण हारे यक्ष हारे गन्धर्व हारे असुरे हारे राक्षस हारे लोहे के अस्त्रों ने बाज़ी मार ली इतिहास आगे बढ़ा। पलीते वाली बंदूकों ने, कारतूसों ने, तोपों ने , बमो ने , बम वर्षक वायुयानों ने इतिहास को किस कीचड़ भरे घाट तक घसीटा है यह सबको मालूम है नख धर मनुष्य अब भी बढ़ रहे है अब भी प्रकृति भी मनुष्यो को उसके भीतर वाले अस्त्र से वंचित नहीं कर रही है , अब भी याद दिला देती है के तुम्हारे नाख़ून को भुलाया नहीं जा सकता। तुम वही लाख वर्ष पहले के नख - दंतावलम्वी जीव हो-पशु के साथ ही सतह पर विचरने वाले और चरने वाले |
प्रश्न 1: गद्यांश के अनुसार, मनुष्य का पहला अस्त्र क्या था?
#2. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
कुछ लाख वर्ष पहले की बात है जब मनुष्य जंगली था, वनमानुष जैसा उसे नाख़ून की जरुरत थी उसकी जीवन रक्षा के लिए नाख़ून बहुत ज़रूरी थे असल में वही उसके अस्त्र थे दाँत भी थे पर नाख़ून के बाद ही उनका स्थान था उन दिनों उसे झूझना पड़ता था प्रतिद्वन्दियो को पछाड़ना पड़ता था नाख़ून उसके लिए आवश्यक अंग था फिर वह अपने अंग से बाहर की वस्तुओ का सहारा लेने लगा। पत्थर के ढेले और पेड़ की डाले काम में लाने लगा (रामचन्द्रजी की वानरी सेना के पास ऐसे ही अस्त्र थे) ! उसने हड्डियों के भी हथियार बनाये! इन हड्डी के हथियार में सबसे मजबूत और सबसे ऐतिहासिक था इन्द्र देव का वज्र, जो ऋषि मुनि की हड्डियों से बना था मनुष्य और आगे बढ़ा उसने धातु के हथियार बनाये जिनके पास लोहे के अस्त्र और शस्त्र थे वे विजयी हुए। देवताओ के राजा तक को मनुष्ये के राजा से इसलिए सहायता लेनी पड़ती थी क्यूंकि मनुष्य के राजा के पास लोहे के अस्त्र थे असुरो के पास अनेक विधाये थी पर लोहे के अस्त्र नहीं थे शायद घोड़े भी नहीं थे आर्यो के पास यह दोनों चीज़े थी आर्ये विजयी हुए फिर इतिहास अपनी गति से बढ़ता गया नाग हारे सुपर्ण हारे यक्ष हारे गन्धर्व हारे असुरे हारे राक्षस हारे लोहे के अस्त्रों ने बाज़ी मार ली इतिहास आगे बढ़ा। पलीते वाली बंदूकों ने, कारतूसों ने, तोपों ने , बमो ने , बम वर्षक वायुयानों ने इतिहास को किस कीचड़ भरे घाट तक घसीटा है यह सबको मालूम है नख धर मनुष्य अब भी बढ़ रहे है अब भी प्रकृति भी मनुष्यो को उसके भीतर वाले अस्त्र से वंचित नहीं कर रही है , अब भी याद दिला देती है के तुम्हारे नाख़ून को भुलाया नहीं जा सकता। तुम वही लाख वर्ष पहले के नख - दंतावलम्वी जीव हो-पशु के साथ ही सतह पर विचरने वाले और चरने वाले |
प्रश्न 2: गद्यांश के अनुसार, असुर और अन्य जातियाँ क्यों हार गईं?
#3. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
कुछ लाख वर्ष पहले की बात है जब मनुष्य जंगली था, वनमानुष जैसा उसे नाख़ून की जरुरत थी उसकी जीवन रक्षा के लिए नाख़ून बहुत ज़रूरी थे असल में वही उसके अस्त्र थे दाँत भी थे पर नाख़ून के बाद ही उनका स्थान था उन दिनों उसे झूझना पड़ता था प्रतिद्वन्दियो को पछाड़ना पड़ता था नाख़ून उसके लिए आवश्यक अंग था फिर वह अपने अंग से बाहर की वस्तुओ का सहारा लेने लगा। पत्थर के ढेले और पेड़ की डाले काम में लाने लगा (रामचन्द्रजी की वानरी सेना के पास ऐसे ही अस्त्र थे) ! उसने हड्डियों के भी हथियार बनाये! इन हड्डी के हथियार में सबसे मजबूत और सबसे ऐतिहासिक था इन्द्र देव का वज्र, जो ऋषि मुनि की हड्डियों से बना था मनुष्य और आगे बढ़ा उसने धातु के हथियार बनाये जिनके पास लोहे के अस्त्र और शस्त्र थे वे विजयी हुए। देवताओ के राजा तक को मनुष्ये के राजा से इसलिए सहायता लेनी पड़ती थी क्यूंकि मनुष्य के राजा के पास लोहे के अस्त्र थे असुरो के पास अनेक विधाये थी पर लोहे के अस्त्र नहीं थे शायद घोड़े भी नहीं थे आर्यो के पास यह दोनों चीज़े थी आर्ये विजयी हुए फिर इतिहास अपनी गति से बढ़ता गया नाग हारे सुपर्ण हारे यक्ष हारे गन्धर्व हारे असुरे हारे राक्षस हारे लोहे के अस्त्रों ने बाज़ी मार ली इतिहास आगे बढ़ा। पलीते वाली बंदूकों ने, कारतूसों ने, तोपों ने , बमो ने , बम वर्षक वायुयानों ने इतिहास को किस कीचड़ भरे घाट तक घसीटा है यह सबको मालूम है नख धर मनुष्य अब भी बढ़ रहे है अब भी प्रकृति भी मनुष्यो को उसके भीतर वाले अस्त्र से वंचित नहीं कर रही है , अब भी याद दिला देती है के तुम्हारे नाख़ून को भुलाया नहीं जा सकता। तुम वही लाख वर्ष पहले के नख - दंतावलम्वी जीव हो-पशु के साथ ही सतह पर विचरने वाले और चरने वाले |
प्रश्न 3: गद्यांश के अनुसार, मनुष्य ने सबसे पहले किस चीज का सहारा लिया था?
#4. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
कुछ लाख वर्ष पहले की बात है जब मनुष्य जंगली था, वनमानुष जैसा उसे नाख़ून की जरुरत थी उसकी जीवन रक्षा के लिए नाख़ून बहुत ज़रूरी थे असल में वही उसके अस्त्र थे दाँत भी थे पर नाख़ून के बाद ही उनका स्थान था उन दिनों उसे झूझना पड़ता था प्रतिद्वन्दियो को पछाड़ना पड़ता था नाख़ून उसके लिए आवश्यक अंग था फिर वह अपने अंग से बाहर की वस्तुओ का सहारा लेने लगा। पत्थर के ढेले और पेड़ की डाले काम में लाने लगा (रामचन्द्रजी की वानरी सेना के पास ऐसे ही अस्त्र थे) ! उसने हड्डियों के भी हथियार बनाये! इन हड्डी के हथियार में सबसे मजबूत और सबसे ऐतिहासिक था इन्द्र देव का वज्र, जो ऋषि मुनि की हड्डियों से बना था मनुष्य और आगे बढ़ा उसने धातु के हथियार बनाये जिनके पास लोहे के अस्त्र और शस्त्र थे वे विजयी हुए। देवताओ के राजा तक को मनुष्ये के राजा से इसलिए सहायता लेनी पड़ती थी क्यूंकि मनुष्य के राजा के पास लोहे के अस्त्र थे असुरो के पास अनेक विधाये थी पर लोहे के अस्त्र नहीं थे शायद घोड़े भी नहीं थे आर्यो के पास यह दोनों चीज़े थी आर्ये विजयी हुए फिर इतिहास अपनी गति से बढ़ता गया नाग हारे सुपर्ण हारे यक्ष हारे गन्धर्व हारे असुरे हारे राक्षस हारे लोहे के अस्त्रों ने बाज़ी मार ली इतिहास आगे बढ़ा। पलीते वाली बंदूकों ने, कारतूसों ने, तोपों ने , बमो ने , बम वर्षक वायुयानों ने इतिहास को किस कीचड़ भरे घाट तक घसीटा है यह सबको मालूम है नख धर मनुष्य अब भी बढ़ रहे है अब भी प्रकृति भी मनुष्यो को उसके भीतर वाले अस्त्र से वंचित नहीं कर रही है , अब भी याद दिला देती है के तुम्हारे नाख़ून को भुलाया नहीं जा सकता। तुम वही लाख वर्ष पहले के नख - दंतावलम्वी जीव हो-पशु के साथ ही सतह पर विचरने वाले और चरने वाले |
प्रश्न 4: गद्यांश के अनुसार, मनुष्य को किस प्रकार की चेतावनी दी गई है?
#5. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
कुछ लाख वर्ष पहले की बात है जब मनुष्य जंगली था, वनमानुष जैसा उसे नाख़ून की जरुरत थी उसकी जीवन रक्षा के लिए नाख़ून बहुत ज़रूरी थे असल में वही उसके अस्त्र थे दाँत भी थे पर नाख़ून के बाद ही उनका स्थान था उन दिनों उसे झूझना पड़ता था प्रतिद्वन्दियो को पछाड़ना पड़ता था नाख़ून उसके लिए आवश्यक अंग था फिर वह अपने अंग से बाहर की वस्तुओ का सहारा लेने लगा। पत्थर के ढेले और पेड़ की डाले काम में लाने लगा (रामचन्द्रजी की वानरी सेना के पास ऐसे ही अस्त्र थे) ! उसने हड्डियों के भी हथियार बनाये! इन हड्डी के हथियार में सबसे मजबूत और सबसे ऐतिहासिक था इन्द्र देव का वज्र, जो ऋषि मुनि की हड्डियों से बना था मनुष्य और आगे बढ़ा उसने धातु के हथियार बनाये जिनके पास लोहे के अस्त्र और शस्त्र थे वे विजयी हुए। देवताओ के राजा तक को मनुष्ये के राजा से इसलिए सहायता लेनी पड़ती थी क्यूंकि मनुष्य के राजा के पास लोहे के अस्त्र थे असुरो के पास अनेक विधाये थी पर लोहे के अस्त्र नहीं थे शायद घोड़े भी नहीं थे आर्यो के पास यह दोनों चीज़े थी आर्ये विजयी हुए फिर इतिहास अपनी गति से बढ़ता गया नाग हारे सुपर्ण हारे यक्ष हारे गन्धर्व हारे असुरे हारे राक्षस हारे लोहे के अस्त्रों ने बाज़ी मार ली इतिहास आगे बढ़ा। पलीते वाली बंदूकों ने, कारतूसों ने, तोपों ने , बमो ने , बम वर्षक वायुयानों ने इतिहास को किस कीचड़ भरे घाट तक घसीटा है यह सबको मालूम है नख धर मनुष्य अब भी बढ़ रहे है अब भी प्रकृति भी मनुष्यो को उसके भीतर वाले अस्त्र से वंचित नहीं कर रही है , अब भी याद दिला देती है के तुम्हारे नाख़ून को भुलाया नहीं जा सकता। तुम वही लाख वर्ष पहले के नख - दंतावलम्वी जीव हो-पशु के साथ ही सतह पर विचरने वाले और चरने वाले |
प्रश्न 5: गद्यांश के अनुसार, इतिहास को किसने 'कीचड़ भरे घाट तक' घसीटा?
#6. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था। जब अहिंसा और शांतिपूर्ण आंदोलन से अंग्रेजों पर कोई खास असर नहीं पड़ रहा था, तब कुछ युवाओं ने सशस्त्र क्रांति का मार्ग अपनाया। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, सुखदेव, राजगुरु जैसे वीरों ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर अंग्रेज़ों के खिलाफ संघर्ष किया। उनका उद्देश्य देश को ब्रिटिश शासन से मुक्त करना था और इसके लिए उन्होंने कई योजनाओं और अभियानों का संचालन किया। भगत सिंह और उनके साथियों ने 1929 में सेंट्रल असेंबली में बम फेंककर अंग्रेजों को चेतावनी दी कि भारत अब और दासता नहीं सहेगा। उनका मकसद किसी को नुकसान पहुँचाना नहीं था, बल्कि वे लोगों को जागरूक करना चाहते थे। भगत सिंह ने कहा था, बहरों को सुनाने के लिए धमाका जरूरी है। चंद्रशेखर आज़ाद ने भी देश की आज़ादी के लिए कसम खाई थी कि वह कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगे, और इसी संकल्प के साथ उन्होंने खुद को गोली मार ली जब उन्हें अंग्रेजों ने घेर लिया। इन वीर क्रांतिकारियों ने न केवल युवाओं में जागृति लाई, बल्कि अंग्रेज़ी शासन की नींव भी हिला दी। इन क्रांतिकारियों के बलिदान ने आजादी के आंदोलन को एक नई दिशा दी। उन्होंने दिखा दिया कि स्वतंत्रता के लिए बलिदान देने से बड़ा कोई कर्तव्य नहीं है। उनके बलिदानों ने आजादी की लड़ाई को गति दी और अंततः भारत को स्वतंत्रता दिलाई।
प्रश्न 1:गद्यांश के अनुसार, क्रांतिकारियों का मुख्य उद्देश्य क्या था?
#7. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था। जब अहिंसा और शांतिपूर्ण आंदोलन से अंग्रेजों पर कोई खास असर नहीं पड़ रहा था, तब कुछ युवाओं ने सशस्त्र क्रांति का मार्ग अपनाया। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, सुखदेव, राजगुरु जैसे वीरों ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर अंग्रेज़ों के खिलाफ संघर्ष किया। उनका उद्देश्य देश को ब्रिटिश शासन से मुक्त करना था और इसके लिए उन्होंने कई योजनाओं और अभियानों का संचालन किया। भगत सिंह और उनके साथियों ने 1929 में सेंट्रल असेंबली में बम फेंककर अंग्रेजों को चेतावनी दी कि भारत अब और दासता नहीं सहेगा। उनका मकसद किसी को नुकसान पहुँचाना नहीं था, बल्कि वे लोगों को जागरूक करना चाहते थे। भगत सिंह ने कहा था, बहरों को सुनाने के लिए धमाका जरूरी है। चंद्रशेखर आज़ाद ने भी देश की आज़ादी के लिए कसम खाई थी कि वह कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगे, और इसी संकल्प के साथ उन्होंने खुद को गोली मार ली जब उन्हें अंग्रेजों ने घेर लिया। इन वीर क्रांतिकारियों ने न केवल युवाओं में जागृति लाई, बल्कि अंग्रेज़ी शासन की नींव भी हिला दी। इन क्रांतिकारियों के बलिदान ने आजादी के आंदोलन को एक नई दिशा दी। उन्होंने दिखा दिया कि स्वतंत्रता के लिए बलिदान देने से बड़ा कोई कर्तव्य नहीं है। उनके बलिदानों ने आजादी की लड़ाई को गति दी और अंततः भारत को स्वतंत्रता दिलाई।
प्रश्न 2 :गद्यांश के अनुसार, भगत सिंह और उनके साथियों ने सेंट्रल असेंबली में बम क्यों फेंका ?
#8. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था। जब अहिंसा और शांतिपूर्ण आंदोलन से अंग्रेजों पर कोई खास असर नहीं पड़ रहा था, तब कुछ युवाओं ने सशस्त्र क्रांति का मार्ग अपनाया। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, सुखदेव, राजगुरु जैसे वीरों ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर अंग्रेज़ों के खिलाफ संघर्ष किया। उनका उद्देश्य देश को ब्रिटिश शासन से मुक्त करना था और इसके लिए उन्होंने कई योजनाओं और अभियानों का संचालन किया। भगत सिंह और उनके साथियों ने 1929 में सेंट्रल असेंबली में बम फेंककर अंग्रेजों को चेतावनी दी कि भारत अब और दासता नहीं सहेगा। उनका मकसद किसी को नुकसान पहुँचाना नहीं था, बल्कि वे लोगों को जागरूक करना चाहते थे। भगत सिंह ने कहा था, बहरों को सुनाने के लिए धमाका जरूरी है। चंद्रशेखर आज़ाद ने भी देश की आज़ादी के लिए कसम खाई थी कि वह कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगे, और इसी संकल्प के साथ उन्होंने खुद को गोली मार ली जब उन्हें अंग्रेजों ने घेर लिया। इन वीर क्रांतिकारियों ने न केवल युवाओं में जागृति लाई, बल्कि अंग्रेज़ी शासन की नींव भी हिला दी। इन क्रांतिकारियों के बलिदान ने आजादी के आंदोलन को एक नई दिशा दी। उन्होंने दिखा दिया कि स्वतंत्रता के लिए बलिदान देने से बड़ा कोई कर्तव्य नहीं है। उनके बलिदानों ने आजादी की लड़ाई को गति दी और अंततः भारत को स्वतंत्रता दिलाई।
प्रश्न 3: गद्यांश के अनुसार, भगत सिंह ने किसे सुनाने के लिए धमाके की आवश्यकता बताई?
#9. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था। जब अहिंसा और शांतिपूर्ण आंदोलन से अंग्रेजों पर कोई खास असर नहीं पड़ रहा था, तब कुछ युवाओं ने सशस्त्र क्रांति का मार्ग अपनाया। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, सुखदेव, राजगुरु जैसे वीरों ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर अंग्रेज़ों के खिलाफ संघर्ष किया। उनका उद्देश्य देश को ब्रिटिश शासन से मुक्त करना था और इसके लिए उन्होंने कई योजनाओं और अभियानों का संचालन किया। भगत सिंह और उनके साथियों ने 1929 में सेंट्रल असेंबली में बम फेंककर अंग्रेजों को चेतावनी दी कि भारत अब और दासता नहीं सहेगा। उनका मकसद किसी को नुकसान पहुँचाना नहीं था, बल्कि वे लोगों को जागरूक करना चाहते थे। भगत सिंह ने कहा था, बहरों को सुनाने के लिए धमाका जरूरी है। चंद्रशेखर आज़ाद ने भी देश की आज़ादी के लिए कसम खाई थी कि वह कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगे, और इसी संकल्प के साथ उन्होंने खुद को गोली मार ली जब उन्हें अंग्रेजों ने घेर लिया। इन वीर क्रांतिकारियों ने न केवल युवाओं में जागृति लाई, बल्कि अंग्रेज़ी शासन की नींव भी हिला दी। इन क्रांतिकारियों के बलिदान ने आजादी के आंदोलन को एक नई दिशा दी। उन्होंने दिखा दिया कि स्वतंत्रता के लिए बलिदान देने से बड़ा कोई कर्तव्य नहीं है। उनके बलिदानों ने आजादी की लड़ाई को गति दी और अंततः भारत को स्वतंत्रता दिलाई।
प्रश्न 4: गद्यांश के अनुसार, चंद्रशेखर आज़ाद ने किस संकल्प के साथ अपने प्राण त्यागे?
#10. निम्नलिखित गद्यांश को पढ़कर पूछे गए प्रश्नों के उत्तर दीजिए :
भारत के स्वतंत्रता संग्राम में क्रांतिकारियों का योगदान अत्यंत महत्वपूर्ण था। जब अहिंसा और शांतिपूर्ण आंदोलन से अंग्रेजों पर कोई खास असर नहीं पड़ रहा था, तब कुछ युवाओं ने सशस्त्र क्रांति का मार्ग अपनाया। भगत सिंह, चंद्रशेखर आजाद, रामप्रसाद बिस्मिल, सुखदेव, राजगुरु जैसे वीरों ने अपनी जान की बाज़ी लगाकर अंग्रेज़ों के खिलाफ संघर्ष किया। उनका उद्देश्य देश को ब्रिटिश शासन से मुक्त करना था और इसके लिए उन्होंने कई योजनाओं और अभियानों का संचालन किया। भगत सिंह और उनके साथियों ने 1929 में सेंट्रल असेंबली में बम फेंककर अंग्रेजों को चेतावनी दी कि भारत अब और दासता नहीं सहेगा। उनका मकसद किसी को नुकसान पहुँचाना नहीं था, बल्कि वे लोगों को जागरूक करना चाहते थे। भगत सिंह ने कहा था, बहरों को सुनाने के लिए धमाका जरूरी है। चंद्रशेखर आज़ाद ने भी देश की आज़ादी के लिए कसम खाई थी कि वह कभी अंग्रेजों के हाथ नहीं आएंगे, और इसी संकल्प के साथ उन्होंने खुद को गोली मार ली जब उन्हें अंग्रेजों ने घेर लिया। इन वीर क्रांतिकारियों ने न केवल युवाओं में जागृति लाई, बल्कि अंग्रेज़ी शासन की नींव भी हिला दी। इन क्रांतिकारियों के बलिदान ने आजादी के आंदोलन को एक नई दिशा दी। उन्होंने दिखा दिया कि स्वतंत्रता के लिए बलिदान देने से बड़ा कोई कर्तव्य नहीं है। उनके बलिदानों ने आजादी की लड़ाई को गति दी और अंततः भारत को स्वतंत्रता दिलाई।
प्रश्न 5: गद्यांश के अनुसार, क्रांतिकारियों के बलिदान का क्या परिणाम हुआ?